भोजन पकाने एवं भोजन करने के कुछ वैदिक और वैज्ञानिक नियम

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भोजन पकाने एवं भोजन करने के कुछ वैदिक और वैज्ञानिक नियम

1 – गैस चालू करने के लिए लाइटर जलाते हैं तो ओम् भूर्भुवः स्वः इतना बोलकर अग्नि प्रज्वलित करें ।


2 – गायत्री मंत्र या मनपसंद भजन बोलते हुए भोजन पकाएं ।


3 – सदा प्रसन्न मन से भोजन पकाएं ।


4 – सदा सात्विक अन्न पकाएं मांसाहार कभी न पकाएं ।


5 – भोजन बनाते हुए ये भाव भी मन में रखें कि इस अन्न को खाने वाले सभी जन स्वस्थ नीरोग दीर्घायु बनें ।

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6 – भोजन पकाकर सबसे पहले एक हिस्सा गाय बिल्ली कुत्ता आदि जीवों के लिए अलग रख दें।


7 – घर में माता पिता आदि बड़े बुजुर्ग हों तो उन्हें पहले भोजन कराएं तथा कोई अतिथि आ जाएं तो उन्हें भी श्रद्धा पूर्वक भोजन कराएं फिर भोजन, मन्त्र बोलकर ईश्वर का स्मरण करते हुए स्वयं भोजन करें । (अंतिम में मंत्र है)


8 – अतिथि नित्य न आते हों तो एक व्यक्ति के भोजन का खर्च अलग से रखते जाएं व वर्ष में एक बार किसी वैदिक विद्वान् को भेंट कर दें ।


9 – भोजन कुकर में व एल्युमिनियम के बर्तन में बिलकुल न पकाएं व जहां तक पीतल, तांबा या मिट्टी के बर्तन में पकाएं तथा कांसा पीतल या मिट्टी के बर्तन में भोजन करें ।


10 – भोजन जहां तक हो सके गर्म ग्रहण करें । बासी भोजन न करें और फ्रीज आदि का बहुत ठंडा पानी भी न पीयें ।


11 – समुद्री नमक के स्थान पर सेंधा नमक का प्रयोग करें ।


12 – जहां तक हो सके ताजी सब्जी का प्रयोग करें , फ्रीज का प्रयोग न करें तो आति उत्तम है , हर दिन ताजी सब्जी ला सकते हैं।


13 – यदि मजबूरी में फ्रीज का प्रयोग करना पड़ता है तो वहां रखी हुई कोई भी वस्तु प्रयोग करने के एक घंटा पहले निकाल लें फिर उसका ठंडापन निकल जाने पर सब्जी आदि बनाएं या फल आदि खाएं ।

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14 – हमेशा बैठकर ही भोजन करें खड़े खड़े भोजन कभी न करें। खड़े होकर भोजन करना स्वास्थ्य एवं संस्कृति दोनों के विरुद्ध है ।
15 – भोजन चबा चबाकर आराम से प्रसन्नता पूर्वक करें, भोजन करते समय अनावश्यक बातचीत न करें जहां तक हो सके मौन रहकर भोजन ग्रहण करें ।


16 – अन्न को झूठा छोड़कर बरबाद कभी न करें ।


17 – ऋतभुक् हितभुक् मितभुक् का पालन करें अर्थात् सच्चाई व ईमानदारी से कमाए हुए धन से हितकारी व संतुलित भोजन करें।


18 – कड़ी भूख लगने पर भोजन करें व बिना भूख के कुछ भी न खाएं ।


19 – जहां तक हो सके घर का बना हुआ भोजन ही करें । बाहर होटल आदि का पिज्जा बर्गर आदि व मैदे से बने पदार्थ खाने से बचें ।


20 – भोजन के बाद 10 मिनट करीब पैदल भ्रमण करें या बज्रासन में बैठें तथा भोजन के एक घंटे के बाद ही जल पीयें उसके पूर्व नहीं ।

भोजन के इन नियमों का पालन करने वाला व्यक्ति स्वस्थ प्रसन्न नीरोग रहते हुए दीर्घायु को प्राप्त करता है ।

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यदि रसोई घर अर्थात् पाकशाला में इतना परिवर्तन करेंगे तो…

पौष्टिक और प्रसाद बन जाएगा पका हुआ अन्न…

ऐसा अन्न खाकर हो जाएगा हमारा सात्विक मन…

मंत्र

ब्रहमार्पणं ब्रहमहविर्‌ब्रहमाग्नौ ब्रहमणा हुतम्।

ब्रहमैव तेन गन्तव्यं ब्रहमकर्मसमाधिना ॥

ॐ सह नाववतु।

सह नौ भुनक्तु।

सह वीर्यं करवावहै

तेजस्विनावधीतमस्तु

मा विद्विषावहै ॥

ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:: ॥

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